हर व्यक्ति आज के समय मे अपने हर छोटे बड़े व्यवसाय से लेकर तमाम चीज़ों में उलझा हुआ है किसी के पास समय नही है,किसी के पास साधन नही हैं।जो शहर में रहकर थोड़ा बहुत अपना जीवन-यापन कर भी रहा है उसे अटकलें परेशान कर रही हैं।क्यों कि इंसान को खुद नही पता कि वो कर क्या रहा है उसे चाहिये क्या?हायतौबा जैसे हालत में इंसान खुद अपने को मार रहा है,उसे खुद के लिए समय ही नही।
इंसान का व्यस्त होना जरूरी भी है,पर इतना भी व्यस्त हो जाना कि वो खुद को भूल जाये ये कोई जिंदगी नही।अपने कार्य के प्रति लग्न रखिये पर मन को सन्तुष्ट रखिये पागल मत बनिये और खुद के लिए भी समय निकालिये।
"जो हुआ अब तक सब जाए भाड़ में
सुकून चाहिए जिंदगी में तो आजा भुला पहाड़ में"